भावी जीवन की तैयारी में-----
जब-जब आँखों में,सिंहासन के,
ख्वाब दिखे,हम प्रतिपल-प्रति दिन-रात चले ,
कहने को सत्ता मिली,किन्तु ,
रहने को कारावास मिले ।
सौरभ सुमनों के लिए ,कई बरसों
तक की, हमने बाट तकी,
जब इनको भी, मुरझाते,कुचले जाते देखा,
फिर जाती यह भी आस रही ।
कुछ बात नहीं हम कह पाये,
कुछ बात नहीं हम सह पाये,
कुछ दर्द रह गए सीने में,
कुछ बात रह गयी जीने में।
गंधर्वों के उत्सव में भी,हम,
शामिल थे ,एक पुजारी से,
कुछ मन्त्र पढे , कुछ भूल गये,
भावी जीवन की तैयारी में ।
-राजेश कुमार सिंह
बन्दर लैम्पंग,
सुमात्रा( इन्डोनेशिया )
2 Comments:
जो भूले, बाद में याद आये या नहीं.
कविता में कुछ गियर बदल रहे हैं तुम्हारी. गीतों की तरफ यह रुझान स्वागत योग्य है.
8:33 am
कविता कानन के सिंह!
तुम तो जो लिख रहे हो वो अब हमें बूझ भी रहा है.बधाई
7:41 pm
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