कुछ इसलियॆ भी …
सॊयॆ हुऒं की ,
जय हुई ,
कुछ इस तरह की , खबर मिली ।
बैठॆ हुए थॆ , हम थकॆ , और ,
हारॆ हुऒं मॆं , जिकर हुई।
कुछ इस तरह सॆ , खबर बनी ।
जॊ दूर थॆ , श्रॊता रहॆ ,
जॊ पास थॆ , दर्शक बनॆ ,
कुछ , इस तरह सॆ , गुजर हुई।
पर्वत सॆ , हम , राई बनॆ ,
राई सॆ , कुछ पर्वत बनॆ ,
यह सॊच - सॊच , गुजारीं रातॆं ,
यह सॊच - सॊच , सहर हुईं ।
सारॆ , सुखॊं की चाह , मॆं ,
मदहॊश सॆ , यौवन मिलॆ ,
दॆखा , दुखॊं की बाढ मॆं ,
बहतॆ हुए , बचपन दिखॆ।
कुछ इसलियॆ भी , नजर झुकी ।
कुछ इसलियॆ , न नजर उठी ।
- राजॆश कुमार सिंह , बंदर लैम्पंग , सुमात्रा , इंडॊनॆशिया ।
4 Comments:
जय हो , राजेश भाई ।
पर कविता , पूरी तरह , समझ मे नहीं आयी ।
अनुनाद
7:34 pm
अनुनाद जी,
पर , आप की कविता मुझे पूरी तरह समझ मे आयी !
-राजेश
9:29 pm
सारॆ , सुखॊं की चाह , मॆं ,
मदहॊश सॆ , यौवन मिलॆ ,
दॆखा , दुखॊं की बाढ मॆं ,
बहतॆ हुए , बचपन दिखॆ।
कुछ इसलियॆ भी , नजर झुकी ।
कुछ इसलियॆ , न नजर उठी ।
बहुत बढ़िया है
11:40 am
वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
नब बर्ष (2013) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
मंगलमय हो आपको नब बर्ष का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
इश्वर की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार
1:27 pm
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