10/20/2005

अंकुर


सफर में,
क्या धूप,
कैसी छाँव...?

खेल में,
क्या जीत,
कैसी हार...?

नींद में,
क्या भूख,
कैसा गाँव...?

साधु की,
क्या जाति,
कैसा भेष...?

प्रार्थना का,
देश क्या,
क्या काल...?

-राजेश कुमार सिंह
बन्दर लैम्पंग, सुमात्रा
इन्डोनेशिया

4 Comments:

Blogger वन्दना अवस्थी दुबे said...

प्रार्थना का,
देश क्या,
क्या काल...
कितनी सार्थक रचना. समय मिलते ही पुरानी पोस्ट पढूंगी.

12:40 am

 
Blogger चंदन कुमार मिश्र said...

इतने कम शब्दों में कविता। अजीब!

9:12 pm

 
Blogger Rahul Singh said...

शब्‍दों का बढि़या प्रयोग.

10:21 pm

 
Blogger shivam said...

What a poem! I am reading it after 16 years.....
Hope u r still alive

9:34 pm

 

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