कैसे-कैसे समय...
कैसे-कैसे समय गुजारे,
कैसे-कैसे दिन देखे ।
आधे जीते,आधे हारे,
आधी उमर उधार जिये।
आधे तेवर बेचैनी के देखे,
आधे दिखे बीमार के।
प्रश्न नहीं था,तो बस अपना,
चाहत, कभी, नहीं पूजे।
हमने, अपने प्रश्नों के उत्तर,
बस,राम-शलाका में ढूँढे।
कैसे-कैसे नगरों घूमे,
कैसे-कैसे रोज जिये।
प्रतिबन्धों की प्रतिध्वनि थी,
या,प्रतिदिन की प्रतिद्वन्दिता रही।
मन्दिर,मस्जिद,चौराहों पर,
धक्का-मुक्की लगी रही।
कैसी-कैसी रीति निभायी,
कैसे-कैसे काव्य कहे !
-राजेश कुमार सिंह
बन्दर लैम्पंग (सुमात्रा)
इन्डोनेशिया