10/12/2004

भावी जीवन की तैयारी में-----

जब-जब आँखों में,सिंहासन के,
ख्‍वाब दिखे,हम प्रतिपल-प्रति दिन-रात चले ,
कहने को सत्ता मिली,किन्‍तु ,
रहने को कारावास मिले ।

सौरभ सुमनों के लिए ,कई बरसों
तक की, हमने बाट तकी,
जब इनको भी, मुरझाते,कुचले जाते देखा,
फिर जाती यह भी आस रही ।

कुछ बात नहीं हम कह पाये,
कुछ बात नहीं हम सह पाये,
कुछ दर्द रह गए सीने में,
कुछ बात रह गयी जीने में।

गंधर्वों के उत्‍सव में भी,हम,
शामिल थे ,एक पुजारी से,
कुछ मन्‍त्र पढे , कुछ भूल गये,
भावी जीवन की तैयारी में ।

-राजेश कुमार सिंह
बन्‍दर लैम्‍पंग,
सुमात्रा( इन्‍डोनेशिया )

10/01/2004

दो गीत

१.
यादों की बारात
पहुँच आई,
जब ,एकाकीपन के ,
घर -दरवाजे तक,
सपनों की डोली में,
बैठी ,तृष्‍णाएँ,
वर्तमान संग,विदा हो गयी ।

२.
शहर,
यह कैसे दिन
तुमने
दिखलाए ?

हम सोए ,
पर,
ख्‍वाब
न आए।

पैसे ,
बिन,जीना है
मुश्किल ।

संबंधों
का , खिलना
मुश्‍किल ।

भीड़ इतनी,
कि,
अपनों को भी
ढूँढ नहीं पाए ।

भूल हुई ,क्‍या ?
समझ
न आए ।

घर का ,
भेदी,
लंका
ढाए।

अपनों से,भी,
रहे ,
सदा,हम हरदम भरमाए।

शहर,
यह कैसे दिन ,
तुमने,
दिखलाए ?

-राजेश कुमार सिंह
बन्‍दर लैम्‍पंग,
सुमात्रा
( इन्‍डोनेशिया )