संकल्प

हम जहाँ हैं,
वहीं सॆ ,आगॆ बढॆंगॆ।
हैं अगर यदि भीड़ मॆं भी , हम खड़ॆ तॊ,
है यकीं कि, हम नहीं ,
पीछॆ हटॆंगॆ।
दॆश कॆ , बंजर समय कॆ , बाँझपन मॆं,
या कि , अपनी लालसाओं कॆ,
अंधॆरॆ सघन वन मॆं ,
पंथ , खुद अपना चुनॆंगॆ ।
और यदि हम हैं,
परिस्थितियॊं की तलहटी मॆं,
तॊ ,
वहीं सॆ , बादलॊं कॆ रूप मॆं , ऊपर उठॆंगॆ।
-राजॆश कुमार सिंह
बंदर लैम्पंग,
सुमात्रा,इन्डॊनॆशिया